सोमवार, 26 मई 2025

साक्षीभाव का भाव और अभाव

“साक्षीभाव का भाव और अभाव ”

मुझे याद आता है वह दिन, जब अचानक आई आंधी ने सब कुछ उड़ा दिया था। चारों ओर अंधेरा 🌑, हवा में गड़गड़ाहट ⚡ और निरंतर टूटती आवाजें 🌪️। बिजली चली गई, और जैसे हर चीज़ ठहर गई हो। कोई हलचल नहीं, कोई गति नहीं — सिर्फ अंधकार।


वही आंधी, वही तूफ़ान, वही शोर — जब हमारे भीतर की साक्षीभाव की विद्युत शक्ति बुझ जाती है, तब जीवन भी अंधेरे में खो जाता है।
कबीर कहते हैं:
"बूँद समानी समुद्र में, सो जाना कठिन नाहिं।
समुद्र समाना बूंद में, जाणै बिरला कोय।"
🌊💧 (सांसारिकता में खो जाना सहज है, पर परम को भीतर उतार लेना, वह विरला ही जानता है।)

हम दौड़ते रहते हैं 🏃‍♂️, हर क्षण एक नए लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं 🎯, यह सोचते हुए कि "यह मुझे सुख देगा" ☀️, "वह मुझे शांति दे देगा" 🕊️। लेकिन जैसे उस रात की तरह, जब बिजली नहीं आई, हम निराशा और थकावट में डूबे रहते हैं 😞, जब सब करने पर भी साक्षीभाव का अभाव होता है।



क्या यही नहीं है हमारी इच्छाओं की यात्रा? हर बार, जब हम किसी चीज़ को पकड़ते हैं, वह हमारे हाथों से फिसल जाती है 🫥। सुख की आड़ में हमेशा दुःख ही झांकता है ☹️। उस सुख में भी कुछ अपूर्णता, कुछ खोया हुआ सा महसूस होता है 🕳️।
हमारी इच्छाएँ, हमारी आकांक्षाएँ, एक-एक करके टूटती जाती हैं — जैसे टूटते हुए बिजली के खंभे 🧱⚡।
और हम फिर भी भागते रहते हैं, न समझते हुए कि असली प्रकाश तो भीतर ही था ✨, केवल उसे देख पाने का साहस नहीं था।

चाह की राहों में बस एक ही मंज़िल निकली,
हर कोने में छाया दुःख की कोई परछाईं।
जिसे समझा था अमृत, वो विष का प्याला निकला,
भीतर झांका नहीं, बस बाहर ही दौड़ लगाई। ☠️🥀🍷

हमारे भीतर की यह जो साक्षी की दृष्टि है 👁️, यह है वो प्रकाश, जो अंधेरे में भी हमें रास्ता दिखा सकता है 🔦।
पर जब हम उस दृष्टि को नकारते हैं, जब हम अपने भीतर की शक्ति को अनदेखा करते हैं, तब हम बस बाहरी दुनिया में खो जाते हैं 🌆, और जीवन महज़ एक धुंधला संघर्ष बनकर रह जाता है 🌀।

"यदा पश्यः पश्यते रूक्मवर्णं..."
("जब वह ज्ञानी आत्मा को उस स्वर्ण जैसे तेजस्वी रूप में देखता है..." — मुंडक उपनिषद 3.1.3)
जब हम उस दिव्य दृष्टि से नहीं देखते, तब सब कुछ केवल छाया है — असत्य की, भ्रम की 🫥🕸️।
ओशो कहते हैं:
"तुम जो देख रहे हो, वही तुम नहीं हो।
तुममें जो ‘देख’ पा रहा है — वही तुम हो। यही है ध्यान, यही है जागृति।"

"नानक कहे मिटे अंधियारा, जग उजियारा होय।
जिस घट भीतर नाम न बसे, सो घट फोकट होय।"
(जिसके भीतर परम नाम नहीं, वह घट तो खाली है — चाहे बाहर कितनी ही चकाचौंध क्यों न हो।) 🪔❌💎



कभी-कभी हमें ऐसा लगता है जैसे हमारे भीतर का “साक्षीभाव” मूक हो गया है 🤐, और हम दुनिया के शोर में गुम हो गए हैं 🔊🌍।
हम भागते रहते हैं, केवल अपने ही प्रतिबिंब से, अंधेरे में 🪞🌑।

पर जब यह साक्षी की आवाज़ जागृत होती है 🔔, तब सारे भ्रम टूटते हैं।
तब हमें यह समझ में आता है — बाहरी सुख और दुःख सब हमारे मस्तिष्क की रचनाएँ हैं 🧠🎭।
असली सुख तो भीतर ही है — एक साक्षी के रूप में।
वही सुख जो स्थायी, शुद्ध और निर्लिप्त है 🕉️🌿।

जिस दिन साक्षी ने चुपचाप भीतर से पुकारा,
उस दिन जीवन ने पहली बार खुद को निहारा।
न रहा कुछ पाने को, न रहा कुछ खोने को,
बस एक मौन था — पूर्ण, शुद्ध, सहारा। 🧘‍♂️🫶🪷

साक्षीभाव ही है वह शक्ति, जो हमें सब कुछ देखता हुआ, महसूस करता हुआ, पर उससे अप्रभावित रहता है 🧿।
वही साक्षी, जो हमें आंधी के शोर में भी चुपचाप और शांत रूप से खड़ा होने की ताकत देता है 🌬️🪨।
वही साक्षी, जो हमें बताता है कि हम जो दौड़ रहे हैं, वह दौड़ अंतहीन है — जब तक हम उस भीतर के प्रकाश को नहीं पहचान लेते 🔁✨।

"द्वितीयं नास्ति"
("दूसरा कुछ है ही नहीं" — बृहदारण्यक उपनिषद)
जब हम भीतर के साक्षी को पहचानते हैं, तब संसार की द्वैतमयी छलनाएँ शांत हो जाती हैं ⚖️🕊️।

जब साक्षी जागता है, तब यह आत्मबोध स्वतः प्रकट होता है — कि हम वही हैं, जिसे हम बाहर ढूँढते रहे 🔍➡️🫁।
"अहं ब्रह्मास्मि" ("मैं ब्रह्म हूँ" — बृहदारण्यक उपनिषद) ✨

अब भी, जब मैं देखता हूँ, तो वही अंधेरा नहीं लगता 🌌।
क्योंकि मैंने महसूस किया है, असली बिजली तो अंदर से चमक रही है ⚡🧡।
और शायद, यही है साक्षीभाव —
वही जो हमें हमेशा सच्चाई का, शांति का और मुक्त जीवन का मार्ग दिखाता है 🕊️🛤️।

कबीर फिर कहते हैं:
"जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिं।"
🪔✨ (जब तक ‘मैं’ था, तब तक हरि नहीं था। जब हरि आया, तब मैं मिट गया — भीतर का दीपक जलते ही सब भ्रम चला गया।)

अब जब मैं अंधेरे को देखता हूँ, तो डर नहीं लगता ❌🌑।
क्योंकि मैंने जान लिया है —

"ज्योति जले अंदरि निरंतरि, अन्धकारु मिटाए।" – गुरु नानक
(जब भीतर की ज्योति जलती है, तब बाहरी अंधकार विलीन हो जाता है) 🔥🪔

और शायद, यही है साक्षीभाव —
जिसमें कोई संकल्प नहीं, कोई तनाव नहीं।
केवल मौन 🤫। केवल दृष्टा 👁️। केवल दिव्यता ✨।

(प्रेरणास्रोत - सदगुरु श्री तरुण प्रधान जी)

महत्वपूर्ण लिंक्स ---
आध्यात्मिकता क्या है, और आध्यात्मिक लक्ष्य क्या होने चाहिए
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सर्वोत्तम मार्ग के बारे में
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