रविवार, 27 अप्रैल 2025

🌟 ज्ञान और अज्ञान की रहस्यमयी कथा 🌟

 


"न त्वज्ञानाद् परं ज्ञानं नास्ति विज्ञानतः परम्। 

अविद्यायाः क्षये नूनं, आत्मा प्रकाशते स्वयम्॥"

("नहीं है ज्ञान कोई, तत्त्वबोध से ऊँचा,

नहीं है अनुभूति से श्रेष्ठ कोई साचा।

जब मिटती है तम की छाया,

स्वयं चमकता आत्मा का दिपाया।

ना उसे खोजने तप चाहिए,

ना बाह्य साधन, ना कोई उपाय।

बस अज्ञान के बादल छँटते ही,

चमक उठता स्वरूप स्वयं भीतर ही।")


🔮 प्रस्तावना

क्या आपने कभी सोचा है कि जो कुछ आप जानते हैं, वह सचमुच 'ज्ञान' है या बस एक परछाई मात्र? क्या आप वही हैं जो आपको आईने में दिखता है, या उससे भी परे कुछ और?

आइए, अद्वैत वेदांत की रहस्यमयी यात्रा पर चलें — जहाँ ज्ञान सिर्फ सूचना नहीं, प्रकाश है, और अज्ञान केवल अंधकार नहीं, माया का मायाजाल है।

🌘 1: अज्ञान — वह जो सत्य का आवरण है

अद्वैत वेदांत कहता है कि अज्ञान (अविद्या) कोई साधारण भूल नहीं है — यह वह मूल भ्रांति है जो आत्मा को स्वयं से दूर कर देती है।

"अविद्यया मृत्युम् तीर्त्वा विद्यया अमृतमश्नुते।" — ईशोपनिषद्

अज्ञान वह कुहासा है जो ज्ञान-सूर्य को ढँक लेता है। यह न जानने का नाम नहीं, गलत जानने का नाम है — जैसे रस्सी को साँप समझ लेना।

यह अज्ञान ही है जो 'मैं शरीर हूँ', 'मैं मन हूँ', 'मैं कर्ता हूँ' का भाव जगाता है।

यह अज्ञान ही है जो अनुभवों को सत्य मानने की भूल करवाता है।


🌞  2: अनुभव — अज्ञान का आधार या जागरण की सीढ़ी?

हमारा जीवन अनुभवों से भरा है — स्वाद, स्पर्श, भावनाएँ, विचार। हम इन्हें ही सत्य मान बैठते हैं। परंतु अद्वैत वेदांत कहता है:

"अनुभव मिथ्या है, यदि वह 'दृष्टा' को न पहचाने।"

हर अनुभव वस्तु है, परिवर्तनशील है, इसलिए मिथ्या है। लेकिन जब इन्हीं अनुभवों का निरीक्षण होता है, तब वे चेतना की ओर ले जाते हैं।


🌈  3: सांसारिक ज्ञान — उपयोगी पर अंतिम नहीं

भूख लगने पर भोजन करना, वाहन चलाना, व्यवहार करना — यह सब 'ज्ञान' के अंतर्गत आता है, पर अद्वैत की दृष्टि से यह ज्ञान प्रवृत्तिनिमित्तक ज्ञान है — व्यवहार योग्य पर आत्मा को नहीं जानता।

"संसार का ज्ञान आवश्यक है, परंतु उसे अंतिम सत्य मान लेना — यही अज्ञान है।"

यह ज्ञान जीव को जीने की कला सिखाता है, पर मुक्ति नहीं देता।


✨  4: ज्ञान — वह जो अज्ञान को मिटा दे

अब आते हैं उस ज्ञान की ओर, जो अज्ञान को जला दे, जिससे आत्मा का प्रकाश स्वतः प्रकट हो जाए।

"तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्।" — गीता

अद्वैत में ज्ञान कोई वस्तु नहीं है — यह तो बस अज्ञान का अभाव है। जैसे सूरज को लाने की आवश्यकता नहीं, बस बादल हटाइए — प्रकाश प्रकट हो जाएगा।

"नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।" — गीता

ज्ञान वह चिंगारी है जो आत्मा को जलाए नहीं, प्रज्वलित कर दे।


🌺 अंतिम अनुभूति: आप वही हैं जिसे आप खोज रहे हैं

"बिंदु बिंदु में तू ही तो है, दृष्टा तू, सृष्टि भी तू। जो मिट जाए अज्ञान का परदा, तो क्या नहीं, तू ही तू!"

जब यह ज्ञान प्रकट होता है, तब 'कर्ता', 'भोक्ता', 'संसार', 'बंधन' — सब मिथ्या प्रतीत होते हैं। बचता है केवल 'मैं' — निर्विकल्प, निष्क्रिय, पूर्ण।

"तत्त्वमसि श्वेतकेतो!" — छांदोग्य उपनिषद्


🌟 उपसंहार: ज्ञान की चिंगारी से प्रज्वलित हो जाइए!

अब निर्णय आपका है! क्या आप भी इस अद्वैत की अग्नि में प्रवेश करेंगे? क्या आप वह ज्ञान प्राप्त करेंगे जो हर अज्ञान को जला दे?

"वह जो स्वयं को जान ले, वह सबको जान लेता है।"

तो आइए — जिज्ञासा से यात्रा शुरू करें, और ज्ञान में विश्राम पाएँ।

ॐ तत् सत्।

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